Friday 31 January 2014

भारत:ब्रह्मांड के दूसरे छोर तक झांकेगी सबसे बड़ी दूरबीन



सर्न की महत्वाकांक्षी परियोजना लार्ज हैड्रान कोलाइडर के बाद एक बार फिर भारतीय वैज्ञानिक एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय परियोजना– थर्टी मीटर टेलीस्कोप (टीएमटी) में महत्वपूर्ण योगदान करने जा रहे हैं

इस परियोजना के तहत पांच देश कनाडा, चीन, भारत, जापान और अमरीका दुनिया की सबसे बड़ी दूरबीन बनाएंगे. इस परियोजना की लागत करीब 1.4 अरब डालर है और इसमें भारत लगभग 14 करोड़ डालर यानी 10 प्रतिशत योगदान करेगा.

इस दूरबीन के लिए भारत का 75 प्रतिशत योगदान इसके कलपुर्जों का डिजायन तैयार करने और दूरबीन के लिए साफ्टवेयर तैयार करने के रूप में होगा, जबकि शेष 25 प्रतिशत राशि नकद दी जाएगी.
इस दूरबीन को हवाई में स्थापित किया जाएगा.

परियोजना का महत्व


सुदूर तारों और आकाशगंगा की पड़ताल करने के लिए वर्तमान दूरबीनों की भी अपनी सीमा है. टीएमटी के जरिए ब्रह्मांड का अध्ययन ऐसे किया जा सकेगा, जैसा इससे पहले कभी नहीं हुआ और विज्ञान की कई बड़ी चुनौतियों के जवाब खोजे जा सकेगा.
इस दूरबीन के काम शुरू करने के बाद वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति सहित अन्य रहस्यों से पर्दा हटा सकेगा.
इसके इस्तेमाल से वैज्ञानिक कॉस्मिक डार्क एज के अंत से लेकर पहले तारे की उत्पत्ति, पुन:-आयनीकरण और आकाशगंगा की उत्पत्ति के युग के बारे में जानकारी हासिल कर सकेंगे.

इसके अलावा टीएमटी से सौर मंडल के बारे में हमारी जानकारी अधिक बेहतर होगी.

नोडल एजेंसी 

                        टीएमटी मौजूदा सबसे बेहतर दूरबीन के मुकाबले नौ गुना शक्तिशाली होगी, जिससे      
                                                 अंतरिक्ष के अधिक स्पष्ट दृश्य मिल सकेंगे.
  
भारत सरकार ने भारतीय एस्ट्रोफिजिक्स संस्थान (आईआईए) को इस परियोजना के लिए नोडल एजेंसी बनाया है और संस्थान के निदेशक पी. श्रीकुमार परियोजना का समन्वय कर रहे है.
आईआईए के अलावा पुणे स्थित इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीसीए) और नैनीताल स्थित आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस भी इस परियोजना में योगदान देंगे.
टीएमटी के गवर्निंग बोर्ड को अध्यक्ष हेनरी यंग ने कहा है कि बुनियादी शोध के लिहाज से भारत महत्वपूर्ण देश है और उसकी प्रतिष्ठा जगज़ाहिर है और यह उनके लिए खुशी की बात है कि भारत इस परियोजना का साझेदार है.

दूरबीन की ख़ासियत

जैसा कि इस दूरबीन के नाम से ही पता चलता है, इसमें 30 मीटर व्यास के लेंस का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसकी क्षमता इस समय मौजूद सबसे बड़ी दूरबीन के मुकाबले नौ गुनी होगी.
बड़े आकार के बावजूद टीएमटी को ज़मीन पर स्थापित किया जाएगा और यह अंतरिक्ष में स्थित दूरबीनों के मुकाबले अधिक शक्तिशाली होगी.
इस दूरबीन का निर्माण अगले साल शुरू होगा और उम्मीद है कि 2022 तक यह काम करने लगेगी.
इंडिया टीएमटी के कार्यक्रम निदेशक बी ईश्वर रेड्डी ने बताया है कि कई भारतीय कंपनियों ने टीएमटी के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में दिलचस्पी दिखाई है.
पांडिचेरी स्थित जनरल ऑप्टिक्स एशिया लिमिटेड के साथ समझौता किया जा चुका है, जबकि गेदरेज सहित कुछ अन्य भी इस परियोजना के लिए कलपुर्जों की आपूर्ति करेंगी. 


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