Monday, 14 April 2014

A B C D : रोचक जानकारी

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  •  1 से 99 तक की स्पेलिंग में कहीं भी a, b, c, d का उपयोग नहीं होता है। 
  •  का प्रयोग पहली बार 'Hundred' में होता है। 









* 1 से 999 तक की स्पेलिंग में कही भी a, b, c का उपयोग नहीं होता है। 

का प्रयोग पहली बार 'Thousand' में होता है। 



* 1 से 999,999,999 तक की स्पेलिंग में कही भी b, c का उपयोग नहीं होता है। 

का प्रयोग पहली बार 'Billion' में होता है। 

का प्रयोग इंग्लिश काउंटिंग में कहीं भी नहीं होता....।



Sunday, 13 April 2014

पिरामिड का इतिहास

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यूं तो मिस्र में 138 पिरामिड हैं, लेकिन काहिरा के उपनगर गीजा में ‘ग्रेट पिरामिड’ है। 


जो प्राचीन विश्व के सात अजूबों की सूची में है। दुनिया के सात प्राचीन आश्चर्यों में शेष यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसे काल प्रवाह भी खत्म नहीं कर सका।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पिरामिड ढाई-ढाई टन के 23 लाख पत्थरों से बनाया गया है? यह कोई ढाई हजार वर्ष ईसा पूर्व बनाया गया था। यह पिरामिड 450 फुट ऊंचा है तथा 43 सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना रहा। 

कहा जाता है कि मिस्र के पिरामिड वहां के तत्कालीन सम्राट (फैरो) गणों के लिए बनाए गए स्मारक स्थल हैं, जिनमें राजाओं के शवों को दफना कर सुरक्षित रखा गया है। इन शवों को ममी कहा जाता है। 

उनके शवों के साथ खाद्य अन्न, पेय पदार्थ, वस्त्र, गहनें, बर्तन, वाद्य यंत्र, हथियार, जानवर एवं कभी-कभी तो सेवक-सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था

गोल गोल गांव (रूंडलिंग्सडॉर्फ अर्थात गोलाकार गांव)

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यह है जर्मनी का एक 'रूंडलिंग्सडॉर्फ' अर्थात गोलाकार गांव।

इसकी तमाम गलियां किसी पहिए के आरों (स्पोक्स) की तरह आकर गोल घेरे के मध्य बिंदु पर मिलती है, जहां गांव का चर्च स्थित है। 

जर्मनी में ऐसे कई परंपरागत गोलाकार गांव हैं, जिनका रूप आज भी वैसा ही रखा गया है, जैसा सदियों पहले था। 

रायसम नामक इस गांव के चर्च की खासियत यह है कि इसमें सबसे पुराना ऐसा ऑर्गन (एक वाद्य यंत्र) रखा है, जो अब भी बजाया जा सकता है। यह ऑर्गन सन्‌ 1457 से बजाया जा रहा है।

भारत के बारे में जानिए 10 बातें

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1. भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

2. भारत विश्व का छठा सबसे बड़ा देश है।


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3. भारत का अंग्रेजी में नाम ‘इंडिया’ इं‍डस नदी से बना है|

4. वाराणसी, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, आज विश्व का सबसे पुराना और निरंतर बसे रहने वाला शहर है। 






5. शतरंज की खोज भारत में की गई थी।

6. बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन भारत में ही आरंभ हुआ था।





7. ‘स्थान मूल्य प्रणाली’ और ‘दशमलव प्रणाली’ का विकास भारत में 100 ईसा पूर्व में हुआ था।

8. सांप सीढ़ी का खेल भारत में तेरहवीं शताब्दी में तैयार किया गया था। 





9. तिरुपति शहर में बना विष्णु मंदिर जो 10वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था, विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक तीर्थ यात्रा गंतव्य है।

10. विश्व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर बृहदेश्वर मंदिर, तमिलनाडु के तंजौर में है

आओ जानें किसने रखे महीनों के नाम


महीने के नामों को तो हम सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि महीनों के यह नाम कैसे पड़े एवं किसने इनका नामकरण किया। नहीं न! तो आइए आज जानते हैं.....

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जनवरी : रोमन देवता 'जेनस' के नाम पर वर्ष के पहले महीने जनवरी का नामकरण हुआ। मान्यता है कि जेनस के दो चेहरे हैं। एक से वह आगे तथा दूसरे से पीछे देखता है। इसी तरह जनवरी के भी दो चेहरे हैं। एक से वह बीते हुए वर्ष को देखता है तथा दूसरे से अगले वर्ष को। जेनस को लैटिन में जैनअरिस कहा गया। जेनस जो बाद में जेनुअरी बना जो हिन्दी में जनवरी हो गया। 


फरवरी : इस महीने का संबंध लेटिन के फैबरा से है। इसका अर्थ है 'शुद्धि की दावत।' पहले इसी माह में 15 तारीख को लोग शुद्धि की दावत दिया करते थे। कुछ लोग फरवरी नाम का संबंध रोम की एक देवी फेबरुएरिया से भी मानते हैं। जो संतानोत्पत्ति की देवी मानी गई है इसलिए महिलाएं इस महीने इस देवी की पूजा करती थीं ताकि वे प्रसन्न होकर उन्हें संतान होने का आशीर्वाद दे। 
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मार्च : रोमन देवता 'मार्स' के नाम पर मार्च महीने का नामकरण हुआ। रोमन वर्ष का प्रारंभ इसी महीने से होता था। मार्स मार्टिअस का अपभ्रंश है जो आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। सर्दियां समाप्त होने पर लोग शत्रु देश पर आक्रमण करते थे इसलिए इस महीने को मार्च नाम से पुकारा गया। 
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अप्रैल : इस महीने की उत्पत्ति लैटिन शब्द 'एस्पेरायर' से हुई। इसका अर्थ है खुलना। रोम में इसी माह कलियां खिलकर फूल बनती थीं अर्थात बसंत का आगमन होता था इसलिए प्रारंभ में इस माह का नाम एप्रिलिस रखा गया। इसके पश्चात वर्ष के केवल दस माह होने के कारण यह बसंत से काफी दूर होता चला गया। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के सही भ्रमण की जानकारी से दुनिया को अवगत कराया तब वर्ष में दो महीने और जोड़कर एप्रिलिस का नाम पुनः सार्थक किया गया।

मई : रोमन देवता मरकरी की माता 'मइया' के नाम पर मई नामकरण हुआ। मई का तात्पर्य 'बड़े-बुजुर्ग रईस' हैं। मई नाम की उत्पत्ति लैटिन के मेजोरेस से भी मानी जाती है।

जून : इस महीने लोग शादी करके घर बसाते थे। इसलिए परिवार के लिए उपयोग होने वाले लैटिन शब्द जेन्स के आधार पर जून का नामकरण हुआ। एक अन्य मतानुसार जिस प्रकार हमारे यहां इंद्र को देवताओं का स्वामी माना गया है, उसी प्रकार रोम में भी सबसे बड़े देवता जीयस हैं एवं उनकी पत्नी का नाम है जूनो। इसी देवी के नाम पर जून का नामकरण 
हुआ।

जुलाई : राजा जूलियस सीजर का जन्म एवं मृत्यु दोनों जुलाई में हुई। इसलिए इस महीने का नाम जुलाई कर दिया गया।
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अगस्त : जूलियस सीजर के भतीजे आगस्टस सीजर ने अपने नाम को अमर बनाने के लिए सेक्सटिलिस का नाम बदलकर अगस्टस कर दिया जो बाद में केवल अगस्त रह गया।

सितंबर : रोम में सितंबर सैप्टेंबर कहा जाता था। सेप्टैंबर में सेप्टै लेटिन शब्द है जिसका अर्थ है सात एवं बर का अर्थ है वांयानी सेप्टैंबर का अर्थ सातवां किन्तु बाद में यह नौवां महीना बन गया।

अक्टूबर : इसे लैटिन 'आक्ट' (आठ) के आधार पर अक्टूबर या आठवां कहते थे किंतु दसवां महीना होने पर भी इसका नाम अक्टूबर ही चलता रहा।

नवंबर : नवंबर को लैटिन में पहले 'नोवेम्बर' यानी नौवां कहा गया। ग्यारहवां महीना बनने पर भी इसका नाम नहीं बदला एवं इसे नोवेम्बर से नवंबर कहा जाने लगा।

दिसंबर : इसी प्रकार लैटिन डेसेम के आधार पर दिसंबर महीने को डेसेंबर कहा गया। वर्ष का 12वां महीना बनने पर भी इसका नाम नहीं बदला।




सूर्योदय और सूर्यास्त के समय क्यों बड़ा दिखता है सूर्य ?

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अक्सर हम यह देखते हैं कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय हमें सूर्य बड़ा दिखता है। लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य बड़ा क्यों दिखता है? उस वक्त उसकी किरणें हल्की होती हैं। ऐसे में वह हमें पूर्ण रूप में दिखता है। लेकिन जब वह पूरी तरह उदित हो जाता है तो उसकी किरणों की रोशनी बहुत तेज हो जाती हैं। हमारी आंखें उसपर नहीं ठहरती हैं। तब हमें वह छोटा दिखता है क्योंकि हम उसके भीतरी भाग को ही देख पाते हैं।

सूर्य हमारी पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है। यह मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। इसकी बाहरी सतह की अपेक्षा अंदर की सतह ज्यादा गर्म होती है। सूक्ष्म तौर पर देखने पर यह हमें दो भागों में दिखाई देता है। जब सूर्य उदय होता है तब धीरे-धीरे इसकी किरणों पृथ्वी पर पहुंचती हैं।

सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में आठ मिनट उन्नीस सेकेंड का समय लगता है। शाम के समय प्रकाश के हल्के और कमजोर होने से सूर्य हमें स्पष्ट और पूरा दिखाई देता है परंतु जब सूर्य दोपहर के समय ठीक पृथ्वी के ऊपर होता है,उस समय उसकी तेजस्वी किरणें पृथ्वी की ओर आती हैं। उन तेज किरणों के असर से हमें सूर्य का बाहरी हिस्सा न दिखकर सिर्फ अंदर का ही भाग नजर आता है। 

इस दौरान सूर्य को देखना आंखों के लिए हानिकारक होता है। इन अवधि में सूर्य के आकार में भी बदलाव दिखता है जो वायुमंडलीय दबाव की वजह से है। 

चूंकि ऊंचाई घटने पर परिवर्तन में ज्यादा फर्क दिखता है इसलिए ऊध्र्वतल छोटा हो जाता है जबकि क्षितिज तल बढ़ जाता है। इसलिए सूर्योदय और उसके अस्त होते समय आकार बड़ा नजर आता है।