Sunday, 2 February 2014

मानव जीवन एक विनाश में प्रवेश करेगा


जब-जब इंसान ने भगवान बनने की कोशिश की है कुछ न कुछ विनाशकारी हुआ है. प्रकृति की अवहेलना प्रकृति ने कभी बर्दाश्त नहीं की है. एक बार फिर मानव प्रकृति की अवहेलना करने की ओर उन्मुख है. जीवन-मृत्यु जैसी चीजें जो हमेशा बस प्रकृति के वश में रही हैं, आज मानव ने जब इसे अपने अधिकार में लेकर मौत पर काबू पाया है तो क्या होगा प्रकृति का रवैया इसपर? क्या प्रकृति इसे माफ कर देगी या मानव जीवन एक विनाश में प्रवेश करेगा?

विज्ञान और भगवान में इतना फर्क है कि भगवान इंसान बना सकता है, सांसें लेने वाले शरीर, पादप बना सकता है, प्रकृति की रचना कर सकता है जो विज्ञान नहीं कर सकता. विज्ञान रोबोट बना सकता है, मानव क्लोन बना सकता है लेकिन श्वास लेने वाला मानव या अन्य कोई जीव शरीर नहीं बना सकता. पर अब विज्ञान ने ऐसा कर दिखाया है.

मेडिकल साइंस ने आज कितनी भी तरक्की कर ली हो, जीवों की शारीरिक संरचना को भले ही समझ लिया हो, बड़ी से बड़ी बीमारियों तक का इलाज भी ढूंढ़ लिया हो लेकिन विज्ञान अब तक इन जीवों की प्राकृतिक संरचना के समान रूप बनाने में असफल रहा है. पर ऐसा लगता है कि निकट भविष्य में विज्ञान अब भगवान बनने की तैयारी कर रहा है. अभी हाल ही में पेरिस के जॉर्जेज पॉंम्पिडॉऊ अस्पताल में एक 75 वर्षीय दिल के रोगी में सफलतापूर्क कृत्रिम दिल ट्रांसप्लांट किया गया है. लिथियम-ऑयन बैटरी से चलने वाला यह कृत्रिम दिल फ्रेंच बॉयोमेडिकल फर्म कार्मेट द्वारा बनाया गया है. सिंथेटिक जैसे प्लास्टिक मैटेरियल आदि खून के संपर्क में आकर इसका थक्का बना सकते हैं. इसलिए इस कृत्रिम दिल का बाहरी हिस्सा जो खून के संपर्क में आता है सिंथेटिक की बजाय बोवाइन टिशू से बनाया गया है.

एक किलोग्राम से भी कम वजन का यह दिल प्राकृतिक स्वस्थ दिल से तीन गुना ज्यादा भारी है. हालांकि अमेरिका में 1963 से ही कृत्रिम दिल को लेकर अनुसंधान चल रहे थे लेकिन यह पहला मौका है जब सफलतापूर्वक ऐसा कोई दिल असली दिल की जगह फिट किया जा सका है. इससे पहले दिल के सहायक यंत्र (पेसमेकर आदि) तो शरीर में फिट किए गए हैं या किसी डोनर के दिल क्षतिग्रस्त दिल की जगह लगाए गए हैं. लेकिन मेडिकल साइंस के इतिहास में पहली बार पूरा का पूरा दिल एक कृत्रिम दिल के साथ सफलतापूर्क बदला जा सका है. इससे दिल के क्षतिग्रस्त होने से मरीजों के मरने की संभावना कम हो जाएगी. हालांकि पूरे विश्व में 1 लाख कृत्रिम दिल की मांग की तुलना में अभी केवल 4 हजार ही उपलब्ध हैं और आम आदमी के बजट से बहुत दूर इसकी कीमत 150 डॉलर रखी गई है लेकिन निकट भविष्य में पूरी मांग के अनुरूप इसकी संख्या उपलब्ध होने की उम्मीद है. इस दिल के साथ एक और दिक्कत इसका आकार है.

कृत्रिम दिल 80 प्रतिशत पुरुषों के दिल की जगह तो फिट हो सकते हैं लेकिन बड़ी आकार के कारण केवल 20 प्रतिशत महिलाओं के दिल को ही इससे बदला जा सकता है. इसे बनाने वाले इंजीनियर्स निकट भविष्य में इसके इन दोषों को दूर करते हुए और भी बेहतर कार्यप्रणाली के साथ इसे लाए जाने की उम्मीद जताते हैं. फिलहाल तो इंसानों के खुश होने के लिए इतना ही काफी है कि अब वे जिंदा रहने के लिए अपने एक ही दिल के मुहताज नहीं हैं..मतलब अगर इसने खराब होकर आपको मारने का मन बना लिया है तो आप भी इससे नाराज होकर इसकी जगह दूसरा दिल ला सकते हैं. लेकिन विज्ञान की हर तरक्की ने मनुष्य को जितनी सुविधाएं दी हैं, प्रकृति की बाध्यताओं से आजादी दी है, उससे कहीं अधिक खतरनाक उसका कुप्रभाव रहा है जो बाद में पता चलता है. प्रकृति मृत्यु पर इस मानव रोक को किस रूप में लेगी यह भी भविष्य में गर्त में है लेकिन फिलहाल तो यह मानव हित में विज्ञान की एक और महान सफलता मानी जा रही है.

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