वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष में डेढ़ सौ प्रकाश वर्ष की दूरी पर एक ग्रह मिला है. अलग और टूटे इस ग्रह पर पानी और पत्थर के निशान दिखाई दिए है. यानी जीवन की संभावना.
साइंस नाम की पत्रिका में ब्रिटेन के खगोलविज्ञानियों ने कहा कि धरती जैसे ग्रह जीडी61 नाम के तारे के आस पास घूमते रहे होंगे. शोध में काम करने वाले, वॉरविक यूनिवर्सिटी में भौतिकी विभाग के बोरिस गानसिके ने बताया, "मुख्य तारे के आस पास घूमते हुए ग्रहों की यह कब्रगाह इसके पूर्व जीवन के बारे में बहुत कुछ बताती है." करीब 20 करोड़ साल पहले जीडी61 की ताकत खत्म हो गई और वह धीमे धीमे पास के ग्रहों को खींचने लगा. इसका गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा था कि ग्रह टुकड़ों में टूट गए. अब वह सूरज छोटा सफेद, मृतप्राय तारा है, जिसके चारों ओर ग्रहों का मलबा घूम रहा है.
साइंस नाम की पत्रिका में ब्रिटेन के खगोलविज्ञानियों ने कहा कि धरती जैसे ग्रह जीडी61 नाम के तारे के आस पास घूमते रहे होंगे. शोध में काम करने वाले, वॉरविक यूनिवर्सिटी में भौतिकी विभाग के बोरिस गानसिके ने बताया, "मुख्य तारे के आस पास घूमते हुए ग्रहों की यह कब्रगाह इसके पूर्व जीवन के बारे में बहुत कुछ बताती है." करीब 20 करोड़ साल पहले जीडी61 की ताकत खत्म हो गई और वह धीमे धीमे पास के ग्रहों को खींचने लगा. इसका गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा था कि ग्रह टुकड़ों में टूट गए. अब वह सूरज छोटा सफेद, मृतप्राय तारा है, जिसके चारों ओर ग्रहों का मलबा घूम रहा है.
खगोलशास्त्रियों ने खास तौर पर इस तारे के आस पास घूम रहे जीवित तारों और ग्रहों का अध्ययन किया ताकि दूसरी दुनिया का पता चल सके. ये ग्रह अपने मुख्य तारे से पर्याप्त दूरी पर हैं और इसलिए वहां का वातावरण न तो बहुत गर्म है और न ही बहुत ठंडा. नासा के केपलर ने गोल्डीलॉक्स जोन कहे जाने वाले इलाके में ग्रहों के आकार और घनत्व का पता लगाया. हालांकि क्या वह धरती जैसे पत्थर वाले हैं या फिर बृहस्पति की तरह गैसों से भरे, इस बारे में पता नहीं चल सका क्योंकि खगोलशास्त्री इन ग्रहों की सतह को अच्छे से नहीं जांच सके.
ताजा विश्लेषण टुकड़े, टुकड़े हो चुके मृत ग्रह का है, जिसके जरिए वैज्ञानिक और जानकारी पाने की कोशिश कर रहे हैं. पहले के शोध में हमारे सौर मंडल से बाहर के 12 टूट चुके छोटे ग्रहो, ग्रहों का परीक्षण किया गया था लेकिन पानी कभी नहीं मिला. पराबैंगनी स्पेक्ट्रोस्कोपी आंकड़ों की जांच से वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि इन टूटे हुए टुकड़ों में उसके द्रव्यमान का 26 फीसदी पानी है, जो पृथ्वी की तुलना में बहुत ज्यादा है.
वैज्ञानिकों को वातावरण में मैग्नीशियम, सिलिकॉन, इस्पात और ऑक्सीजन भी मिले. गानसिके के मुताबिक,"ये दो पदार्थ, पथरीली सतह और पानी, हमारी सौर प्रणाली से बाहर जीने की संभावना के मुख्य तत्व हैं."
यह शोध हबल स्पेस टेलीस्कोप और मौना केया ऑब्जर्वेटरी के जुटाए आंकड़ों पर आधारित हैं. मौना केया हवाई द्वीप में आंकड़ें जमा करता है. इस शोध के मुख्य लेखक और केम्ब्रिज में एस्ट्रोनोमी संस्थान के जे फारिही कहते हैं, "इतने बड़े क्षुद्रगह पर बड़ी मात्रा में पानी मिलने का मतलब है कि जीडी61 सौर प्रणाली में रहे जा सकने वाले ग्रह थे, या शायद अभी भी है. और इसी तरह के बाकी तारों के आस पास भी हो सकता है. किसी प्रणाली में इतने बड़े क्षुद्रग्रह हों और वहां ग्रह नहीं बन सके ऐसा नहीं हो सकता. और जीडी61 में ऐसे पदार्थ हैं जो सतह पर काफी पानी पैदा कर सकते हैं. हमारे नतीजे दिखाते हैं कि इस एक्सोप्लानेटरी सिस्टम में जीवन की संभावना वाले ग्रह थे."
इस नतीजे ने एक बार फिर वैज्ञानिकों को इस उम्मीद से भर दिया है कि किसी ऐसा ग्रह भी मिलेगा जहां जीवन है. हो सकता है कि आज से छह अरब साल बाद दूसरे सौर मंडल के खगोल विज्ञानी हमारे ग्रह के टुकड़े जांच रहे हों...
एएम/एनआर (एएफपी)
DW.DE
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